Bhikhari thakur biography of christopher

कौन थे भिखारी ठाकुर, यहां जानिए उनसे जुड़े हर सवाल का जवाब

Patna: भिखारी ठाकुर का नाम किसी पहचान का मोहताज नहीं है, खास कर बिहार और भोजपुरी समाज में. वे बहुआयामी प्रतिभा के व्यक्ति थे. वे एक ही साथ कवि, गीतकार, नाटककार, नाट्य निर्देशक, लोक संगीतकार और अभिनेता थे. उनकी मातृभाषा भोजपुरी थी और उन्होंने भोजपुरी को ही अपने काव्य और नाटक की भाषा बनाई थी.

कब हुआ था जन्म
भिखारी ठाकुर का जन्म 18 दिसंबर 1887 को बिहार के सारण (छपरा) जिले के कुतुबपुर (दियारा) में हुआ था.

उनके पिता का नाम दल सिंगार ठाकुर और माता का नाम शिवकली देवी था. उनके पिता अपनी जातिगत व्यवस्था के आधार पर बंटे कार्य करते थे. लोगों की हजामत बनाना. पूजा-पाठ, शादी-ब्याह और जन्म-मृत्यु के अवसरों पर होने वाले कार्यक्रमों से भी उनकी गृहस्थी चलती थी.

प्रारंभिक शिक्षा 
भिखारी ठाकुर 9 वर्ष की उम्र में पहली बार स्कूल गए.

पर अगले 1 वर्ष तक वो वर्णमाला के एक अक्षर भी नहीं सीख पाए. पढ़ाई में मन नहीं लगा तो विधिवत शिक्षा को त्याग कर गाय चराने के कार्य में लग गए. उम्र बढ़ी तो खानदानी पेशा शुरू कर दिया, यानी कि लोगों के हजामत बनाने लगे. लेकिन उस व्यवस्था में उन्हें पैसे के बजाय साल में एक बार फसल मिलती थी और भिखारी ठाकुर को पैसे कमाने थे. चूंकि अब भिखारी ठाकुर हजामत बनाना सिख चुके थे, तो उन्होंने सोचा कि क्यों न किसी शहर में जाकर अच्छी कमाई की जाए.

फिर वो पहले खड़गपुर और बाद में मेदिनीपुर गए.

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मेदिनीपुर आना भिखारी ठाकुर के जीवन की सबसे प्रमुख घटना रही. वहां उन्होंने रामलीला देखा और उनके भीतर का कलाकार धीरे-धीरे उन पर हावी होना शुरू हो गया. हाथ से उस्तरे छूटते गए और  मुंह से कविताओं का प्रवाह फूटना शुरू हो गया.

वापस गांव आए और गांव में ही रामलीला का मंचन करना शुरू कर दिया. लोगों ने उनकी रामलीला की काफी सराहना भी की. अब भिखारी ठाकुर को ये समझ आ गया कि इसी क्षेत्र में उनका भविष्य है. इस बीच घरवालों के विरोध और अपनी उम्मीदों के बीच जूझते हुए सिंगार ठाकुर का बेटा धीरे-धीरे बिहारी ठाकुर के नाम से जाना जाने लगा.

भिखारी ठाकुर की प्रसिद्ध रचनाएं
उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में बिदेसिया, भाई-बिरोध, बेटी-बियोग या बेटि-बेचवा, कलयुग प्रेम, गबरघिचोर, गंगा असनान, बिधवा-बिलाप, पुत्रबध, ननद-भौजाई, बहरा बहार आदि शामिल हैं.

भिखारी ठाकुर का कथा संसार किसी किताबी विमर्श के आधार पर कल्पनालोक के चित्रण पर आधारित नहीं था.

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किताबी ज्ञान के नाम पर भिखारी ठाकुर बिल्कुल भिखारी रह गए थे. उनकी लेखनी के पात्र और घटनाओं में उनका खुद का भोग और देखा समझ यथार्थ था. भिखारी ने शब्द ज्ञान से लेकर चिंतन के असीमित क्षेत्र का ज्ञान तक लोकजीवन से ग्रहण किया था और यही उनकी रचनाओं की सबसे बड़ी उपलब्धि भी रही.

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क्यों आज भी प्रासंगिक हैं भिखारी ठाकुर के नाटक
खुद किताबों से अक्षर ज्ञान न प्राप्त कर पाने वाले भिखारी ठाकुर पर अब तक सैकड़ों किताबें लिखी जा चुकी हैं. उनकी रचनाएं इतनी विस्तृत हैं कि तत्कालीन बिहार का पूरा सामाजिक विवरण उनके कुछ नाटकों के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है. उनके नाटकों में जिन समस्याओं पर बात हुई है, वो सब आज भी समाज मे व्याप्त है.

विस्थापन, स्त्री चेतना, वृद्धों, विधवाओं आदि पर लिखे गए बिहारी साहित्य की आवश्यकता आज के समाज को भी उतनी ही है.

तंग हालातों में परिवार 
भिखारी ठाकुर ने वर्षों पहले ही समाज को एक नयी चेतना प्रदान की थी, पर आज उनके गांव को उनके परिवार को और उनकी दुर्लभ रचनाओं को सहेजने वाला कोई नहीं है.

उनके लोकसंगीत और रचनाओं को आगे बढ़ाने वाले परिवार के सदस्य और उनके शिष्य तंग हालातों में गुजर बसर करने को मजबूर हैं.